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Friday, May 8, 2015

About Operating System By- Pawan Kumar (Pawan Computers Baghauch Ghat, Deoria)

Operating System
Language Translator


चलिए इन्हें विस्तार से जानते है !
Operating System :-
यह कुछ विशेष प्रोग्रामों का Group है जो किसी Computer के सभी कार्यो को Control करता है ! यह Computer के साधनों के उपयोग पर नजर रखने और व्यवस्तित करने में हमारी मदद करता है ! Operating System आवश्यक होने पर अन्य प्रोग्रामो को चालू करता है , विशेष सेवाएँ देने वाले प्रोग्रामो को चालू करता है और User की इच्छा के अनुसार Output निकालने के लिए Data का प्रबंध करता है ! वास्तव में यह User और Computer के Hardware के बीच Interface का काम करता है.
इस समय काफी सारे Operating System प्रचलन में जिनमे मुख्य निम्न है :- Windows XP, Windows 7, Windows 8, Windows 10, Red Hat Linux, Ubuntu आदि-आदि.

Language Translater :-
ये ऐसे Programs है, जो विभिन्न Programming Languages में लिखे गए Pragrams का अनुवाद Computer के Machine Language में करते है ! यह अनुवाद करवाना इसलिए जरुरी है क्योंकि Computer सिर्फ अपनी Machine Language ही समझता है.
Language Translater तीन प्रकार के होते है –
1. Assembler
2. Compiler
3. Interpreter

चलिए इनको विस्तार से समझते है –
Assembler :- यह Program Assembly Language में लिखे गए किसी Program पढता है और उसे Machine Language में Convert करता है ! Assembly Language के Program को Source Program भी कहा जाता है ! इसका Machine Language में Convert होने के बाद जो Program प्राप्त होता है, उसे Object Program कहा जाता है !

Compiler :- यह Program किसी High-Level Programming Language में लिखे गए Source Program को Machine Language में Convert करता है ! Compiler Source Program निर्देश को Convert करके उसे एक या अधिक Machine Language के निर्देशों में बदल देता है ! हर एक High-Level Programming Language के लिए अलग Compiler की जरुरत होती है.
Interpreter :- यह Program भी किसी High-Level Programming Language में लिखे गए Source Program को Machine Language में Convert करता है ! परन्तु यह एक बार में Source Program के एक कथन को एक या अधिक मशीनी भाषा के कथनों में Convert करता है और उनका पालन करता है ! वैसे Compiler और Interpreter का कार्य एक जैसा होता है, अंतर केवल यह है की Compiler जहाँ Object Program बनाता है, वहीँ Interpreter कुछ नहीं बनाता ! इस लिए Interpreter का उपयोग करते समय हर बार Source Program की जरुरत पड़ती है.

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